Wednesday 13 January 2016

जब अमिताभ फिल्म की कहानी सुनते वक्त आसमान की तरफ देखें, तो समझो...


कालिया', 'शहंशाह', 'मैं आजाद हूं', 'मेजर साहब' जैसी हिट फिल्मों के डायरेक्टर टीनू आनंद अगर फिल्मों में न होते तो टैक्सी ड्राइवर होते। 17 साल पहले 'मेजर साहब' बनाकर डायरेक्शन को अलविदा कहने वाले टीनू फिर से कट बोल सकते हैं। इसके लिए वह इन दिनों लखनऊ में हैं। टीनू अपनी सुपरहिट फिल्म कालिया के रीमेक पर काम जल्द शुरू कर सकते हैं। पांच का डायरेक्शन और करीब 150 फिल्मों में ऐक्टिंग कर चुके टीनू ने मंगलवार को हमसे की ढेर सारी बातें।
अब तो माहौल बदल गया है
मेरे पिता इंदरराज आनंद राइटर थे। उन्होंने कई फिल्में लिखी हैं। उन्हीं में से एक थी राजेंद्र कुमार की 'आन बान'। फिल्म की कहानी लखनऊ की थी, इसलिए शूटिंग के लिए पूरी यूनिट यहां आई थी। यह 1969 की बात है। सुबह लोकेशन पर सेटअप लगा नहीं था और हमें पैकअप करना पड़ा। न पुलिस की सुरक्षा थी और न सिक्यॉरिटी। स्टूडेंट्स हल्ला मचा रहे थे। पूरी टीम मुंबई वापस लौट गई। वहां लखनऊ का सेट लगाया गया। पहले कई फिल्मों में ऐसा ही होता था पर अब सब बदल गया है। मैंने 'बाबर' में काम किया था। पूरी फिल्म लखनऊ में शूट हुई। अब यह शहर शूटिंग फ्रेंडली हो गया है। सब ठीक रहा तो डायरेक्शन में मैं लखनऊ से ही कमबैक करूंगा।
लखनऊ से प्यार विरासत में मिला है
17-18 साल पहले मैंने डायरेक्शन छोड़ दिया था। मेरी लास्ट फिल्म मेजर साहब थी। लखनऊ की रंजना जी और उनके बेटे मुझे लखनऊ खींच लाए हैं। वे चाहते हैं कि मैं उनकी कहानी पर फिल्म बनाऊं। कहानी इंट्रेस्टिंग और लखनऊ बेस्ड है। इस शहर में मेरे कई दोस्त हैं इसलिए मैंने फिलहाल फिल्म के लिए हां कर दी है। मैं लोकेशंस देख रहा हूं। यूपी के कुछ गावों में भी जाना है। अगर सब ठीक रहा तो फिल्म जरूर बनाऊंगा। हालांकि, मेरा लखनऊ से कोई नाता नहीं है लेकिन मेरे पिता जी को लखनऊ से प्यार था। वही प्यार मुझे इस शहर के लिए विरासत में मिला है।
पिताजी ने लिखे 'कालिया' के डायलॉग
मेरे फिल्मों में आने की वजह पिता जी ही थे। वह नहीं चाहते थे कि उनके दोनों बेटे इस लाइन में आएं, इसीलिए मुंबई में रहने के बावजूद उन्होंने हमें अजमेर, हॉस्टल में रहने के लिए भेज दिया था। हालांकि, नियती को कुछ और मंजूर था। कॉलेज के बाद पहले पांच साल मैंने असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर सत्यजीत रे के साथ काम किया। फिर ऐड फिल्म बनाई। ऋषि कपूर के साथ घरेलू संबंध थे, इसलिए उन्होंने कहा कि तुम फिल्म बनाओ, मैं काम करूंगा। इस तरह मेरी पहली फिल्म दुनिया मेरी जेब में शुरू हुई। मेरी दूसरी फिल्म कालिया भी शुरू हो गई। मैंने दोनों फिल्में एकसाथ कीं। यह देख पिताजी ने मुझे गले लगा लिया। उन्होंने ही 'कालिया' के फेमस डायलॉग लिखे थे।
ऐक्टिंग में तो ऐश थी
जब मैं 'शहंशाह' बना रहा था तब मुझे कमल हासन की 'पुष्पक' में ऐक्टिंग का चांस मिला। दरअसल, 'पुष्पक' में अमरीश पुरी को काम करना था। जब शूटिंग शुरू हुई तो अमरीश पुरी ने डेट की प्रॉब्लम की वजह से मना कर दिया। पहले मैं और सारिका एक फिल्म में काम कर चुके थे पर वह फिल्म रिलीज ही नहीं हुई। सारिका (कमल हासन की पत्नी) ने मेरी तस्वीर कमल को दिखाई और कहा कि यह बहुत अच्छा ऐक्टर है। दूसरे दिन कमल का फोन आया पर मैंने मना कर दिया, क्योंकि उस दिन मैं अमित जी के साथ शूटिंग कर रहा था। काफी कहने पर मैं एक दिन चला गया और बस मेरा ऐक्टिंग का सफर शुरू हो गया। मुझे कई ऑफर आने लगे। मुझे लगा कि डायरेक्शन तो काफी हेक्टिक होता है, जबकि ऐक्टिंग में ऐश है। तीन घंटे काम बाकी आराम। धीरे-धीरे मैं ऐक्टिंग में डायवर्ट हो गया।
अमिताभ ने आसमान नहीं देखा था : टीनू
'कालिया' बनाने के दौरान इंडस्ट्री में तहलका मच गया कि इस नए लड़के को अमिताभ ने हां कैसे कर दिया। कुछ ने कहा कि टीनू ने 'सात हिंदुस्तानी' में अमिताभ को रोल दिलाया था, जबकि ऐसा कुछ नहीं था। मैं कॉन्फिडेंट था। जब मैंने उन्हें कहानी सुनाई और कहा कि मुझे पता है कि आपको कहानी पसंद आई है तो वह बोले, 'तुम्हें कैसे पता?' मैंने कहा कि जब मैं यहां आ रहा था तो मुझे दो लोगों ने बताया था कि जब आप कहानी सुनते वक्त आसमान की तरफ देखें और बालों में हाथ फेरें तो समझो कहानी रिजेक्ट। हालांकि, मेरी कहानी सुनते वक्त न आपने आसमान देखा और न बालों में हाथ फेरा। यानी कहानी पसंद आ गई। मेरी बात सुन अमित जी हंसे और हां कर दिया। मैंने अमित जी के साथ चार फिल्में की हैं, लेकिन 'मैं आजाद हूं' मुझे सबसे अच्छी लगी।
इस 'कलिया' में अमिताभ नहीं होंगे
अब सब बदल गया है। अच्छे बदलाव में हम टेक्निकली स्ट्रॉन्ग हो गए हैं पर बुरे की बात करें तो अब अच्छे राइटर नहीं हैं। जो पेन पकड़ लेता है वही खुद को राइटर मान लेता है। पहले लोगों के पास लिटरेचर का बैकग्राउंड होता था। अब ऐक्टर ही अपने पसंद के डायलॉग लिखने लगे हैं। मैं फिलहाल ऐक्टिंग में खुश हूं। एक नए लड़के के साथ 'कालिया' के रीमेक का ऑफर आया है। यह मेरे लिए बड़ा चैलेंज होगा। उस कालिया को बनाने में चार साल लगे थे, क्योंकि अमित जी बिजी थे। इसमें अमित जी का कोई रोल नहीं है। अगर मैं फिल्म लाइन में न होता तो टैक्सी ड्राइवर होता, क्योंकि मुझे लोगों से मिलना पसंद है। इस शौक को पूरा करने के लिए टैक्सी चलाने से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है
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